चांडिल,रांची लोकसभा चुनाव में तीन प्रत्याशी का चुनाव प्रचार रेस है।
पंचायत, विधानसभा , लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी को जीतने के लिए बूथ कमिटी का अहम रोल होता है, प्रत्याशी को पहले की बूथ जीता होता है, इसके चुनाव जीत सकता। चुनावी बहुत कुछ खेल होता है। जिसमें,भवाना,जाती,घर्म, अफवाह का बाजार होता है।
लोकसभा चुनाव का दौर चल रहा है, और रांची लोकसभा में 25 मई 2024, शनिवार को चुनाव होना है... और रांची लोकसभा में कुल 27 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं.... रांची लोकसभा में कुल 21,62,169 मतदाता अपना मताधिकार का प्रयोग करेंगे।रां
ची लोकसभा में 27 प्रत्याशी तो मैदान में हैं... लेकिन क्रमशः BJP, CONGRESS और JBKSS 03 पार्टी के प्रत्याशी ही मैदान में दमखम दिखा रहें हैं, इन तीन पार्टी को लेकर मेरा एक छोटा सा समीक्षा है.
BJP: बीजेपी के प्रत्याशी संजय सेठ हैं, और बीजेपी का गठबंधन AJSU के साथ है, बीजेपी बूथ स्तर पर काफ़ी मजबूत है, बीजेपी का बूथ से लेकर, मण्डल, प्रखंड, विधानसभा, जिला कमिटी का संगठन है, यानी की हर स्तर पर कार्यकर्ताओ का भरमार है, इन सभी कमिटी से जुड़े लोग प्रत्याशी कौन है ये चीज नहीं देखते है.. इनके लिए संगठन और पार्टी का नीति सिद्धांत ही सर्वपरी है, बीजेपी के सभी कार्यकर्त्ता बिना किसी नुक्स निकाले पार्टी हित में दिन रात मेहनत कर रहें है... साथ ही बीजेपी का AJSU के साथ गठबंधन है, AJSU का भी बूथ से लेकर कमिटी काफ़ी मजबूत है, पंचायत से लेकर जिला तक कमिटी है... लेकिन AJSU में संगठन से जुड़े कुछ लोगों का सिद्धांत नहीं है... कुछ लोग मुद्रा मोचन के चक्कर में हैं... यानी की लोकल भाषा में इसे - कोथा पाबो, के दिबेक, कोथा जाबो के चक्कर में रहते हैं, ऐसे लोगों का पार्टी के विचारों से कोई मतलब नहीं है, जो बात इस पार्टी के सुप्रीमो भी कई स्थानों पर बोलते हुए नजर आतें है, लेकिन ऐसे लोगों को पार्टी हित में कार्य करना चाहिए, पार्टी सर्वपरी होता है। फिर भी AJSU के ऐसे लोगों को छोड़कर ज्यादातर लोग इस लोकसभा में जीतोड़ मेहनत कर रहें है.
महागठबंधन कांग्रेस प्रत्याशी यशस्विनी सहाय।CONGRESS : कांग्रेस की प्रत्याशी यशस्वनी सहाय है, जो की पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय की बेटी हैं.. हर स्टेज में इन्हे पिता के नाम से परिचय दिया जा रहा है... कांग्रेस का गठबंधन JMM, RJD, LEFT के साथ हैं... कांग्रेस का बूथ कमिटी नहीं के बराबर हैं, यहाँ तक की प्रखंड अध्यक्ष कौन हैं, सचिव कौन हैं, ये भी पता नहीं चल रहा हैं...पार्टी के लोग खुद कमिटी को लेकर असमंजस में हैं... बूथ कमिटी नहीं होने का मुख्य कारण चुनाव हारने के बाद प्रत्याशी या पार्टी कार्यकर्त्ताओ को करीब साढ़े चार साल बेसहारा छोड़ दिया जाता हैं... जिसके कारण इन कार्यकर्त्ताओ के पास - "इधर चला मैं, उधर चला, जाने कहाँ मैं किधर चला.. " वाला सीन है. बेचारे साढ़े चार साल अपने नेताओं के आने के उम्मीद में रहते हैं, लेकिन इनका कोई नहीं सुनता... वहीं JMM का जहाँ तक सवाल है, बूथ कमिटी हैं, पंचायत से लेकर जिला तक कमिटी है, JMM अपने जगह पर मजबूत है, इनके कार्यकर्त्ता मेहनती हैं, लेकिन खुद के पार्टी के सिद्धांतो पर चलते हैं... बाकी कांग्रेस के लिए JMM खुद का पॉकेट से खर्चा क्यों करें, यही वाला सीन हैं.. कांग्रेस के साढ़े चार साल गायब रहने का फायदा JMM को मिला भी है... और इसका रिजल्ट समय में लोगों को देखने को मिलेगा... बाकी RJD, LEFT का क्या बात करें... इन्हे तो झारखंड में दूसरे के नाव में सवारी करने में इनको मजा आता हैं.।
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