चुआड़ विद्रोह के महानायक क्रांतिवीर शहीद रघुनाथ महतो की 247 वीं शहादत दिवस मनायी ।

क्रांतिवीर शहीद रघुनाथ महतो स्मृति समिति झिमड़ी ने चुआड़ विद्रोह के महानायक क्रांतिवीर शहीद रघुनाथ महतो की 247 वीं शहादत दिवस मनायी ।

भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिवीर रघुनाथ महतो की 247वीं शहादत दिवस मनाया गया , झिमड़ी में सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं श्रद्धांजलि दी गई*

चांडिल,नीमडीह प्रखंड अंतर्गत झिमड़ी ग्राम में ' क्रांतिवीर शहीद रघुनाथ महतो स्मृति समिति झिमड़ी ' की  ओर से चुआड़ विद्रोह के महानायक क्रांतिवीर शहीद रघुनाथ महतो की 247 वीं शहादत दिवस मनायी गयी। झिमड़ी स्थित सोनाडूंगरी में क्रांतिवीर शहीद रघुनाथ महतो की आदमकद मूर्ति पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम में कवि सह झूमूर सम्राट गोविंद लाल महतो एवं महिला संप्रदाय ने मनमोहक प्रस्तुति देकर लोगों का मन मोह लिया।


इस अवसर पर मुख्य अतिथि आदिवासी कुड़मि समाज के प्रदेश अध्यक्ष पद्मलोचन महतो ने कहा कि जब ब्रिटिश सत्ता पूरे देश में अपने कदम जमा रही थी, तब क्रांतिवीर रघुनाथ महतो ने चुआड़ विद्रोह के माध्यम से उन्हें कड़ी चुनौती दी । गुरिल्ला युद्ध कला में निपुण इस वीर योद्धा ने जंगलमहल क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध सशक्त आंदोलन खड़ा किया। 1774 में क्रांतिवीर के विद्रोहियों ने किंचुग परगना (सरायकेला-खरसावां) के मुख्यालय में पुलिस फोर्स को घेर कर मार गिराया। उनके साहसिक कार्यों से अंग्रेज भयभीत हो गए और अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में अपना अधिकार करने का विचार छोड़ दिया। 

 विशिष्ट अतिथि बासुदेव महतो ने कहा झाड़खंड के कई वीर सेनानियों को इतिहास में समूचित स्थान नहीं मिला है। देश के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी व चुआड़ विद्रोह के महानायक क्रांतिवीर शहीद रघुनाथ महतो भी उन्हीं में से एक हैं, जिन्हें वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे अधिकारी थे। लेकिन उनका बलिदान हर झाड़खंडी की हृदय में अमर है। इसलिए आज के दिन उनकी शहादत दिवस पर श्रद्धा सुमन अर्पण कर उनके बलिदान को नमन करते हैं। इसलिए झाड़खंड सरकार से मांग है कि इनकी जयंती एवं शहादत दिवस पर सरकारी छुट्टी घोषणा करें और वीर शहीद की गौरवगाथा को इतिहास विषय पर समुचित स्थान देने का काम करें। उन्होंने फिर कहा कि 21 मार्च 1738 को हमारे ही नीमडीह प्रखंड के अंतर्गत रघुनाथपुर के समीप घुंटियाडीह ग्राम में जन्मे क्रांतिवीर रघुनाथ महतो विद्रोह के दौरान लड़ते-लड़ते 5 अप्रैल 1778 को सिल्ली के लोटा गांव के 'गढ़तैंतेइर' में अंग्रेजों के गोली से वीरगति प्राप्त हुए। इस प्रकार उन्होंने देश की आजादी के लिए अंतिम सांस तक लड़ते रहें। ऐसे क्रांतिकारी वीर की जीवनादर्श सभी वर्गों, जातियों और मजहबों  आदि के लिए एक आदर्श है। 

कार्यक्रम को सफल बनाने मे ग्राम प्रधान बासुदेव महतो, ग्राम प्रधान किशनडीह भारत महतो, पंचायत समिति पद्मलोचन महतो, गुहिराम महतो, गणेश चन्द्र महतो, फाल्गुनी महतो, साहेबराम महतो, शगुन महतो, भोलानाथ महतो आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

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