यह कैसी विडंबना, ईचागढ़ विश का नाम भी डुबे क्षेत्र से आता है, दंश झेलने को विवश, ईचागढ़ वासी : निपेन महतो

यह कैसी विडंबना, ईचागढ़ विश का नाम भी डुबे क्षेत्र से आता है, दंश झेलने को विवश, ईचागढ़ वासी : निपेन महतो

चांडिल , ईचागढ़ विधानसभा का नाम भी डुबे क्षेत्र से आता है । प्रमाण पत्र व सुविधाओ से वंचित है । निपेन महतो ने बताया कि जनप्रतिनिधि, प्रशासन की विडंबना के दंश झेलने को विवश हैं ईचागढ़ वासी । चांडिल बांध विस्थापित मत्स्य जीवी स्वावलंबी सहकारी समिति का बैठक नौका विहार स्थल पर हुआ। जिसमें चांडिल जलाशय के मत्स्य पालन समिति व अन्य संग विस्थापित के रोजगार पर विचार-विमर्श किया गया है । जलाशय के पुनर्वास निति 2003, 2012 में यह प्रावधान है कि विस्थापित लोगों को रोजगार मुहैया कराया जाए । इतना हीं नहीं, वहां का पर्यटन और मत्स्य विभाग में जलाशय पर, पहला अधिकार जलाशय के विस्थापित लोग का है। लेकिन इन अधिकार एवं प्रावधान में भी विस्थापित लोग राजनीति का शिकार बन रहे हैं। इस संबंध में विस्थापित लोगों का कहना है कि पर्यटन विभाग में पुर्नवास निति का उल्लंघन कर रहे हैं। मत्स्य विभाग के पुर्नवास निति के संबंध में भी उल्लेख किया गया। जिला मत्स्य विभाग के मनमानी रवैया के कारण विस्थापित लोग का रोजगार का छीन गया है। विस्थापित लोगों का कहना है कि हमारे पुर्वज से जमीन जलाशय में लिया गया।अब विस्थापित परिवार के रोजगार के विभिन्न स्रोत पर्यटन, नौका विहार , मत्स्य योजना के रोजगार को राजनीति के तहत छीन लिया है। इसलिए विस्थापित लोग चरण बद्ध आंदोलन करने को विवश हैं। बैठक में लोग ने यहां तक कहा कि ईचागढ़ गांव जलाशय में प्रभावित हुए, लेकिन विस्थापित गांव के सूची में विधानसभा अभी भी है। जो लोगों के लिए विडंबना बनी हुई है। ईचागढ़ गांववासी का स्थानीय प्रमाण पत्र नहीं बनता है, लेकिन विधानसभा सीट आज भी बरकरार है।जिला मत्स्य पदाधिकारी के मनमानी ढंग से मत्स्य योजना कार्य गैर विस्थापित कर रहे हैं। जो कि प्रावधान का उल्लघंन हो रहा है । विस्थापित दर दर के ठोकर खा रहे हैं।विरोध में समिति की प्रतिनिधि उपायुक्त सरायकेला खरसावां से मिलेंगे और विस्थापित की स्थिति से अवगत कराया जाएगा। बैठक में , अम्बिका यादव, नारायण गोप , श्यामल मार्डी, किरण हेम्ब्रम, अकलु धीवर, विवेक गोप, पंचानन महतो, कंचन सिंह, देवेंद्र महतो, लखन महतो आदि उपस्थित थे। यही वजह है, ईचागढ़ गांव जलाशय से प्रभावित हैं और हर चुनाव में नेताओं व प्रत्याशियों द्वारा विस्थापितों का मुद्दा उठाया जाता है।


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